
वक्त बहुत अच्छा मरहम है…..

परिंदों सा दिल
गया है मिल
जा कर कहीं, फूलों में खिल।
देखने को मुड़ा कोई,
कहानी बनी नई,
दिल में हल चल हुई कोई नई
जा कर देखा, है किताबों की लड़ी,
दिल में एक खुशी सी उमड़ी,
सारी खुशियाँ हो जैसे, उसी में जड़ी।
– मनीषा कुमारी
हँसी भी कमाल की चीज़ है,
किसी के सामने
बेमतलब मुस्कुरा के देखो ज़रा
वो इंसान सोंच में चला जाता है
नहीं चाहता कुछ
फिर भी किसी से
हाल चाल पूछ जाता है।
बेमतलब का ख्याल करना,
बस उसी वक्त आता है।
– मनीषा कुमारी
प्रकृति की प्रेम कहानी
है बहुत सीधी – साधी,
लेकिन ये कहानी,
किसी किसी को ही
समझ मे है आती।
कण कण को बटोर कर,
कभी कोई चीज़ बनाती।
कभी पल में ही किसी,
पहाड़ को मिट्टी में है मिलाती।
प्रकृति की प्रेम कहानी
है बहुत सीधी साधी,
लेकिन ये कहानी
किसी को ही
समझ मे है आती।
– मनीषा कुमारी
हाथों की लकीरें और पत्थर,
दोनों को ही बदलना मुश्किल होता है।
लेकिन किसी न किसी दिन,
ये दोनों बदल के ही रेहते हैं।
– मनीषा कुमारी
जिंदगी की रफ्तार कुछ धीमी हो गयी,
मंदी के दौर में घरबन्दी हो गयी।
मई के महीने में भी,
यहाँ ठंडी हो गयी।
– मनीषा कुमारी
पन्ने पन्ने बोलते नज़र आते हैं,
हर एक शब्द
कहानियों का रास्ता दिखाते हैं,
कभी हँसाते हैं, कभी रुलाते हैं,
कभी सही राह दिखाते हैं,
हर पन्ने राज़ खोलते हैं।
किताबें, किताबें नहीं
आईना है दुनिया की।
ये किताबें सिर्फ कहानी नहीं,
खाब भी बोलती हैं।
कभी किसी के खाब,
पूरी करती हैं,
कभी उन सपनों का रास्ता दिखती है।
– मनीषा कुमारी
गलतफ़हमी का क्या दोष,
हम ही बुला लेते हैं उसे।
गलतफ़हमी तो,
गलती से भी आये,
फिर भी सही नही होता
और सही हो तो,
उसे पल में
मानना मुश्किल होता है।
– मनीषा कुमारी
जिंदगी की प्लेट में,
व्यंजन कई देखें।
कभी खट्टे कभी मीठे देखे
कड़वाहटों से भरे भी,
कई व्यंजन मिले,
लेकिन उन कड़वाहट वाले
व्यंजनों ने,
मजबूती के ही पोषण दिए।
– मनीषा कुमारी
कहानी किसी की,
कभी पूरी नही होती।
रह जाती हैं,
कई बातें अधूरी।
बातें किसी की,
पूरी नही होती।
आखरी पन्नों की,
बातें भी कभी – कभी,
दूसरे किताबों से शुरू है होती।
– मनीषा कुमारी