कैसी है ये दुनिया
कैसा है ये मानव
नफरत से नफरत की आग में,
सारे हैं अभिमान में,
जान के ये दुनिया की रीत,
झुलस रहे नफरत की आग में।
धन दोलत तो है ही वजह,
बिन वजह भी नफरत है छाई।
– मनीषा कुमारी
कैसी है ये दुनिया
कैसा है ये मानव
नफरत से नफरत की आग में,
सारे हैं अभिमान में,
जान के ये दुनिया की रीत,
झुलस रहे नफरत की आग में।
धन दोलत तो है ही वजह,
बिन वजह भी नफरत है छाई।
– मनीषा कुमारी
बीतता जाता है समय,
निकलती जाता है समय।
लेकिन जिंदगी भी तो थमती नही,
वक्त निकलता जाता है।
वक्त कभी थमता नही,
बीतता जाता है समय।
– मनीषा कुमारी
जिनकी खुद की जिंदगी का कुछ पता नही,
वे हमें जिंदगी जीना सीखा रहे ।
जो खुद न बोल पाते एक शब्द सही से ,
वो हमे बोलना सीखा रहे।
दूसरों का मज़ाक उड़ाने वालों ,
तुम खुद एक मज़ाक ही हो।
– मनीषा कुमारी
वो तो एक उजाला है,
नदियों की बहती धारा है,
कभी तेज कभी मंद है।
चिड़ियों की चह – चहाट है,
वो झरने का पानी है,
पेड़ो की हरियाली है ,
कभी सुखी कभी निराली है।
समुन्द्र की गहराई है ,
आसमान की ऊंचाई है,
शक्तियों का उजला है वो ,
ईश्वर के समान है,
वो तो एक अदभुत कला है।
– मनीषा कुमारी
शायर हम नही ,
यह जिंदगी बनाती है ।
कवियों को कवि ,
यह हालात बनाती है।
तकदीर बदलती मुसीबतें,
यह सांप सीढ़ी का खेल है।
जाने अनजाने में ,
खेल जाती कई दाव है।
क्या कहे सुख दुख को
यही जिंदगी कहलाती है।
– मनीषा कुमारी
दोस्त ने कहा मुझसे ,
और बताओ क्या बात है ।
हमने दोस्त से कहा,
परेशान हु मैं बहोत
तुम बताओ क्या बात है ।
हमारा परेशान शब्द सुन ,
वे बोले चलो फिर कल मिलते है।
– मनीषा कुमारी
अगर कोई तुझे मारे,
तो खा लेना मार।
अगर कोई करे परेशान,
तो हो जाना शांत।
आलोचनाओं से डर कर,
न मानना कभी हार।
लेकिन ले के अपने लक्ष्य को साथ,
बढ़ते रहना आगे हर बार ।
– मनीषा कुमारी
चिंता खुशी को
खुशी चिंता को
परेशान करती है ।
फिर भी ,रहती संग संग
दोस्ती इनकी निराली है ।
जमाना करता दूर इन्हें
फिर भी ,साथ रहने की इन्होंने ठानी है ।
– मनीषा कुमारी
सफलता किमती है,
यह न मिलती आसानी से,
न मिलती बाज़ारों में,
न व्यर्थ बेठने से |
यह न आती बुलाने पर ,
लोग फिरते मारे ढूँढ़ते इस किमती चीज़ को,
परंतु यह बसा अपने अंदर
जो मिलता पसिना बहाने से |
– मनीषा कुमारी