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बोली के चाल ढाल का,
पूरी दुनिया में खेल है।
जो न सीख पाया ये चाल,
वो इस दुनिया में फेल है।
कभी नजरें करती हैं जादू,
तो कभी लय का खेल है।
कभी आये प्रलये,
तो सोंच का खेल है।
जीने के लिए,
बस कुछ सलिकों का हेर फेर है।
वर्ना क्या ज़रूरत थी,
बोली विचारों की।
जानवर भी तो जीते हैं,
अपनी जिंदगी।
– मनीषा कुमारी
दुपट्टे को क्या कहूँ,
ये तो है हथियार नया।
कभी बन जाता है, औज़ार मेरा
कभी श्रृंगार का सामान है,
कभी खुद की पहचान है,
कभी खुद का सम्मान है,
कभी खेलने की चीज़ नई,
कभी बढ़ता इससे,
आत्मसम्मान है।
– मनीषा कुमारी
सताओ न शब्दों को,
तलवों पर न दो ज़ोर इतना।
आ रहा जो बुरा विचार तुम्हे,
ओझल हो जाएँगे कुछ क्षण में।
नकारात्मकता के तूफान में,
शक्तिशाली मन मस्तिष्क बना ।
बुरे बंदिशों को तू हटा,
दर्दनाक हादसों को तू बेहला।
ओझल कर दे बुरे विचारों को,
कल तेरा रोशन होगा।
ओझल हो जाएँगे कुछ क्षण में,
नकारत्मकता के तूफान सारे।
– मनीषा कुमारी
नकारात्मकता और सकारात्मकता की लड़ाई में
हर बार नकारात्मकता जीते ये जरूरी नहीं।
करते रहो संघर्ष विचारों संग,
हर बार हार मिले ये ज़रूरी नहीं।
हार मिलती भी उसे है जो जीतते हैं,
हारने वाले तो सिर्फ अनुभवों पर जीते हैं।
– मनीषा कुमारी
तारा नाराज़ है चाँद से
और चाँद नाराज़ है तारे से
रोशनी दोनों की अपनी नहीं
फिर भी परेशान हैं एक दूसरे से।
चाँद और तारे दोनों
एक साथ होते पूरे।
जो दोनों साथ न होते तो
आसमान की खूबसूरती निचोड़े।
– मनीषा कुमारी
इंतज़ार करते करते
इंतजार फीका पड़ गया।
किसी को हमारा प्यार
तीखा पड़ गया।
तुम्हें खुश करते-करते
हम दुखी हो जाते हैं
तुम अभी आए भी नहीं
और हम तुम्हारे सपने सजाते हैं।
खुद को अच्छा करते करते
बुरे रास्ते पर चले जाते हैं
तुम अभी आए भी नहीं
हम तुम्हारा मिजाज़ सुधारना चाहते हैं।
तुम्हारी फिक्र करते करते
हम खुद को भूल जाते हैं
तुम अभी आए भी नहीं
की हम तुम्हें खुश करना चाहते हैं।
कोई नाराज़ है हमसे
हम उन्हें मनाना चाहते हैं,
तुम अभी आए भी नहीं
और हम तुम्हारी नाराजगी दूर करना चाहते हैं।
– मनीषा कुमारी
यादें बचपन की
डाँट, लाढ़ और दुलार
सब मिलता था,
नाना – नानी के घर जाने की,
अंदर से झिज्ञासा खूब होती थी।
मेले का नाम सुन,
नए खिलोने याद आते थे।
दादी नानी की कहानियों में
हर वक्त,
खोए रहने का जी करता था।
बारिश में नहाना,
झूला झूलना,
वो लकड़ी के खिलोने से खेलना
चेहरे पर करोड़ों की खुशी ला देता था।
खुदसे ही खेल बनाते थे,
जब खेल नहीं मिलते थे।
वो बचपन की यादों में,
मीठी सी मुस्कान आ जाती है।
दुसरे की खुशी में,
खुद की खुशी नज़र आती थी।
बोले से चेहरे के साथ
सारी दुनिया अच्छी लगती थी।
– मनीषा कुमारी
हिम्मत, होंसला, होशियारी
सब फिरती हैं मारी मारी
बस कुछ क्षण की है देरी
दुर्बुद्धि करती है दुश्मनी
हिम्मत होंसला होशियारी
सबको मारती बारी – बारी
छोटी सी चिंगारी से
जलाती है पूरी बारी।
हिम्मत होंसला होशियारी
हैं एक दूसरे की साथी
जब साथ हैं आती
पूरा जीवन है संभाल लेती।
– मनीषा कुमारी