परिंदों सा दिल
गया है मिल
जा कर कहीं, फूलों में खिल।
देखने को मुड़ा कोई,
कहानी बनी नई,
दिल में हल चल हुई कोई नई
जा कर देखा, है किताबों की लड़ी,
दिल में एक खुशी सी उमड़ी,
सारी खुशियाँ हो जैसे, उसी में जड़ी।
– मनीषा कुमारी
परिंदों सा दिल
गया है मिल
जा कर कहीं, फूलों में खिल।
देखने को मुड़ा कोई,
कहानी बनी नई,
दिल में हल चल हुई कोई नई
जा कर देखा, है किताबों की लड़ी,
दिल में एक खुशी सी उमड़ी,
सारी खुशियाँ हो जैसे, उसी में जड़ी।
– मनीषा कुमारी
यूँ छोटी छोटी बातों को हम,
क्यों पकड़ा करते है।
हर बात को क्यों खींचा करते हैं,
रोज़ रात को सोंचते हैं
हम सिर्फ सोंचा ही करते हैं।
खुद को संभालना भी,
बहुत मुश्किल काम है।
हम खुद को रोज़ बनाया करते हैं,
रोज़ एक नई सोंच से हम
गुजरा करते हैं।
जाने क्यों हम,
छोटी छोटी बातों को
हम पकड़ा करते हैं।
– मनीषा कुमारी
बैठी तो रहती नहीं
और आपसे कुछ कहती नहीं…
बात छोटी सी है
हम आपको जानते नहीं….
इसलिए आपके बारे में,
कुछ कहते नहीं
कुछ पल रहना हो जहाँ,
वहाँ खुशियाँ फैलानी चाहिए।
तीख्खे वचनों से,
रिश्ता तिख्खा नहीं करना चाहिए।
– मनीषा कुमारी
कुछ भी कहना,
कुछ भी सुनना,
कुछ भी समझना,
फिर बताना।
लोगों का समझना,
फिर समझाना।
अब बस यही,
जिंदगी लगती है।
कभी हँसना
कभी मुस्कुराना,
कभी रोना,
कभी रुला देना।
दुनिया को छोड़,
खुद में मस्त रहना।
अब बस यही,
जिंदगी लगती है।
– मनीषा कुमारी
नेट की ज़रूरत बहुत है मगर,
इस्तेमाल भी कम करती हूँ।
देखा है जिंदगी को पलटते
दूसरों की,
लेकिन न जाने
हमारी जिंदगी कब पलटेगी।
भागते हैं जिस लक्ष्य के पीछे,
न जाने वो लक्ष्य
कब पूरा होगा।
किसी दिन चमकेगा हमारा भी सितारा,
हम भी कुछ करेंगे ऐसा।
जिंदगी कितनी मुश्किल है,
लेकिन फिर कोशिश ज़ारी रहेगी।
तूफ़ान की रात भले अंधेरी रहेगी,
लेकिन उजाला हमेशा।
खुशनुमा रहेगा।
– मनीषा कुमारी
बारिश की बौछार,
अच्छी बहुत लगती है।
कुछ समय की हो,
तो थोड़ी अच्छी लगती है।
ज़्यादा समय तक हो,
तो बहुत ज़्यादा अच्छी लगती है।
लेकिन हर वक्त हर दिन हो
तो खलती है बारिश |
– मनीषा कुमारी
कोई कितना भी छुपा के
कुछ बताये की
“हम तुम्हारे बारे में ऐसा नहीं सोंचते”
लेकिन चेहरे पे वो बात
और बातों – बातों राज़
निकल ही जाता है।
– मनीषा कुमारी
क्या करें
बहुत बड़ी बात है,
छोटा सा डर है
लेकिन लगता डर का महल है।
लोगों के लिए
ये छोटी सी बात है।
कैसे बता दें
इस डर का कारण
जब खुद को ही
याद नहीं
इस डर की वजह
बस शुरुआत हुई थी
और अब तक चल रही।
ये सिल सिला ज़रूर,
कभी न कभी तो
खत्म होगा।
बस हिम्मत बहुत
जुटानी पड़ती है।
क्या करें,
बहुत बड़ी बात है।
छोटा सा डर है,
लेकिन लगता डर का महल है।
– मनीषा कुमारी
प्रेम, मोह, लोभ
हमेशा खुदसे आता है।
न तो किसी के
बुलाने से आता है।
न तो किसी के समझाने से आता है।
जब जो होना होता है,
वो हो जाता है।
कभी जल्दी
कभी देर से होता है।
ये सब हमेशा खुदसे आता है…..
– मनीषा कुमारी
शब्दों से मिलकर,
कहानी बनाते हैं,
कभी सच्ची
कभी झूटी बनाते हैं।
तुमने देखा होगा कईयों को,
कहानियों से लोग बदलते हैं।
कभी पिघलते हैं,
कभी बनते हैं
कभी बिगड़ते हैं।
कुछ लोग
सिर्फ शब्दों को महत्व देते हैं,
हर शब्द में लोग
बात ढूंढ लेते हैं
बात को फिर तोड़ मरोड़ देते हैं,
इन सब पर नियंत्रण रखना है
तो शब्दों पर नियंत्रण ज़रूरी है।
– मनीषा कुमारी