लेखक – स्वामी पुरुषोत्तमाननंद
प्रकाशक – स्वामी ब्रह्नस्थानन्द अध्यक्ष, रामकृष्ण मठ
रामकृष्ण आश्रम मार्ग, धंतोली, नागपुर – 440012 rkmathnagpur.org
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एकाग्रता सबके लिए जरूरी है चाहे वो इंसान जो भी कम करता हो या विद्यार्थी ही क्यों न हो। एकाग्रता भंग होते ही कोई दुर्घटना हो सकती है। अक्सर हमने लोगों की यह भी कहते सुना होगा कि नजर हटी दुर्घटना घटी। यानी एकाग्रता के भंग होते ही वे किसी दुर्घटना का रूप ले सकता है या तो कोई छोटी – मोटी समस्या उत्पन्न हो सकती है। एकाग्रता को कहीं से सीखना की जरूरत नही होती, एकाग्रता का विकास कई मुश्किल परिस्थितियों का सामना स्यम से करते रहने से हो जाता है।
खुद को एकाग्र करने के लिए जरूरी है, अपने मन की सयमित रखना। कोई भी कार्य करने से पहले अपने मन को सयमित करके उस कार्य को सावधानी पूर्वक करने से ही कोई काम अच्छे से किया जा सकता है। किसी भी कार्य को अगर ध्यान के साथ निरंतर किया जाए तो ही अपने मन मस्तिष्क को जल्द ही एकाग्र किया जा सकता है। इस पुस्तक में अर्जुन द्वारा श्री कृष्ण जी से एकाग्रता पर पूछे गए प्रश्न का उतर श्री कृष्ण जी फवारा किस प्रकार दिया गया है इसका उल्लेख किया गया है साथ ही अन्य विद्वानों की भी चर्चा की गई है। लेखक ने मन की चंचल प्रवृत्ति और उसे काबू में कैसे किया जाए इसकी चर्चा की गई है। स्वामी पुरुषोत्तमाननंद जी ने अपनी इस पुस्तक में विद्यार्थी किस प्रकार अपने मन को एकाग्रचित करके आगे बढ़ सकते है इसका उल्लेख किया है साथ ही उन्होंने इसका कारण भी बताया है कि किसी विद्यार्थी में एकाग्रता का भाव क्यों नही होता है।