लिखने को शब्द,
लिखने कागज़ कम पड़ते हैं।
सच तो ये है कि,
कम कुछ भी नहीं पड़ता बस,
लिखने को ख्याल कम पड़ते हैं।
– मनीषा कुमारी
लिखने को शब्द,
लिखने कागज़ कम पड़ते हैं।
सच तो ये है कि,
कम कुछ भी नहीं पड़ता बस,
लिखने को ख्याल कम पड़ते हैं।
– मनीषा कुमारी
हाथों की लकीरें और पत्थर,
दोनों को ही बदलना मुश्किल होता है।
लेकिन किसी न किसी दिन,
ये दोनों बदल के ही रेहते हैं।
– मनीषा कुमारी
जिंदगी की रफ्तार कुछ धीमी हो गयी,
मंदी के दौर में घरबन्दी हो गयी।
मई के महीने में भी,
यहाँ ठंडी हो गयी।
– मनीषा कुमारी
आज एक इंसान को देख,
शेर घबरा गया।
बोला में सिर्फ
जंगल में राज़ करता हूँ,
सामने तो दुनिया पर
राज़ करने वाला आ रहा
उस इंसान को देख
शेर भी सीधा चलना सीख गया।
उस शेर ने अब,
बोलना छोड़ दिया।
– मनीषा कुमारी
तुम्हारी आँखें तो नहीं बोलती,
मगर भाई,
ये दिल सब कुछ जनता है।
तुम्हारा सुख दुख,
सब भाँप लेता है।
तुम्हारे बोलने से पहले,
हमे सब कुछ पता चल जाता है।
– मनीषा कुमारी
जिंदगी धूँआ है,
और लोग आँख मलते हैं।
खुद बीमारी फैलाते हैं,
खुद को शिकार कहते हैं।
– मनीषा कुमारी
लोग बरसते हैं,
बरसने के लिए।
हम गरजते हैं
गरजने के लिए।
लेकिन अब अपनी,
दुनिया ही अलग है।
हम छाँव लाते हैं,
बरसने के लिए,
गरजते सिर्फ तूफानों में हैं।
लोग चाहे बरसते हैं,
बरसने के लिए।
– मनीषा कुमारी
लिखना तो कुछ नही
लेकिन लिख कर भी
बहुत कुछ लिखना बाकी है।
कई शब्दों को पढ़ना,
कई किताबों को टटोलना बाकी है
नही है जिंदगी, फिर भी
जीना बाकी है।
हर मुश्किल के बाद भी
परेशान होना बाकी है।
उदास बहुत हैं,
लेकिन खुश होना बाकी है।
जिंदगी की राह में अभी,
बहुत दूर चलना बाकी है।
देखो कहीं,
जिंदगी रो तो नही रही,
अभी बहुत रूठना बाकी है।
जिंदगी की राह में
बहुत दूर चलना बाकी है
न जाने कौनसा गिला है हमें
की हमें गिर कर फिर,
उठना बाकी है।
– मनीषा कुमारी
तूफानों से न पूछो,
हवा का रुख क्या है।
मोहल्ले भर में चर्चा है,
की हवा घूमती बहोत है।
– मनीषा कुमारी
यूँ बातों का हमे
गुब्बारा मिला,
आँधी का कोई
नज़ारा मिला,
हमारे बिना बोले ही
समुन्द्र में तूफान का
नज़ारा मिला।
– मनीषा कुमारी