देखो कैसा ये रिश्तों का डोर,
लड़के वाले
और लड़की वालों के बीच,
कैसी ये होड़।
इतनी तो न होती,
कभी घोड़ों दौड़।
इनकी तुलना में है,
आम जैसे फल।
प्रकार जिसके कई हैं,
स्वाद भी अलग – अलग।
कभी संस्कारी कभी मॉडर्न का छिलका,
कभी मांगो में गाँव वाली चाहिए,
कभी शहर की कोई लड़की चाहिए,
नही तो सिर्फ घरवाली चाहिए।
सच में अनोखी है,
ये रिश्तों की होड़।
– मनीषा कुमारी