दुपट्टे को क्या कहूँ,
ये तो है हथियार नया।
कभी बन जाता है, औज़ार मेरा
कभी श्रृंगार का सामान है,
कभी खुद की पहचान है,
कभी खुद का सम्मान है,
कभी खेलने की चीज़ नई,
कभी बढ़ता इससे,
आत्मसम्मान है।
– मनीषा कुमारी
दुपट्टे को क्या कहूँ,
ये तो है हथियार नया।
कभी बन जाता है, औज़ार मेरा
कभी श्रृंगार का सामान है,
कभी खुद की पहचान है,
कभी खुद का सम्मान है,
कभी खेलने की चीज़ नई,
कभी बढ़ता इससे,
आत्मसम्मान है।
– मनीषा कुमारी
तारा नाराज़ है चाँद से
और चाँद नाराज़ है तारे से
रोशनी दोनों की अपनी नहीं
फिर भी परेशान हैं एक दूसरे से।
चाँद और तारे दोनों
एक साथ होते पूरे।
जो दोनों साथ न होते तो
आसमान की खूबसूरती निचोड़े।
– मनीषा कुमारी
इंतज़ार करते करते
इंतजार फीका पड़ गया।
किसी को हमारा प्यार
तीखा पड़ गया।
तुम्हें खुश करते-करते
हम दुखी हो जाते हैं
तुम अभी आए भी नहीं
और हम तुम्हारे सपने सजाते हैं।
खुद को अच्छा करते करते
बुरे रास्ते पर चले जाते हैं
तुम अभी आए भी नहीं
हम तुम्हारा मिजाज़ सुधारना चाहते हैं।
तुम्हारी फिक्र करते करते
हम खुद को भूल जाते हैं
तुम अभी आए भी नहीं
की हम तुम्हें खुश करना चाहते हैं।
कोई नाराज़ है हमसे
हम उन्हें मनाना चाहते हैं,
तुम अभी आए भी नहीं
और हम तुम्हारी नाराजगी दूर करना चाहते हैं।
– मनीषा कुमारी
परेशानियाँ नहीं थी वजह,
लिखने की।
लेकिन श्रेय,
परेशानियों को देती रही।
ढूंढ – ढूंढ के परेशान होती रही,
परेशानियों को।
कला खुद में थी,
और भटकती रही,
दुख की गलियों में।
चार साल में अब समझी,
की भावनाएँ दिल का खिलौना है।
जब चाहे जैसे चाहे
भावों को डालो।
चाहो तो हर पल खुश रहलो
और चाहो तो,
हर वक्त दुख के सागर में डुबो।
– मनीषा कुमारी
दो दिन में युँ जिन्दगीयाँ बदल जाती है
इस पल कुछ और
दूसरे ही पल कुछ और
ये जीन्दगी धूंधली सी नजर आती है।
कुछ ही पलों में,
जमीन – आसमाँ का अन्तर आ जाता।
जल्दबाज़ी से गुणों का,
फासला आजाता है।
गुण बनते हैं धीमी आँच पे,
जल्दबाज़ी से तो गुणों का
नाश ही होता है।
– मनीषा कुमारी
शाम से एक उलझन है,
बेचैन करती बातें हैं,
की बोलना जरूरी है,
या बोलकर ही कोई पाप है।
जाने अनजाने में किसी से,
घूमने की बात कर ली,
किसी से बात करने की बात करली,
भले घूमने का इरादा हमारा,
जरा भी न था।
बातें तो खुद के सिवा,
किसी से न कि,
फिर इल्जाम ऐसा लगा,
जिसके बारे में हमने कभी,
कभी भी नही सोंचा।
हमे बात न करने आई,
वार्ना बातों की रंगोली बिखेरना,
हम भी जानते थे।
– मनीषा कुमारी
सोशल मीडिया और प्रेम का तो पता नही,
लेकिन सोशल मीडिया से प्रेम ज़रूर देखा।
कभी रात भर जागे,
कभी दिन भर ताकते रहे इसे।
हर भाव में इसे निहारा,
कभी संग बहुत समय बिताया।
कभी नेट धीरे होने से,
पूरा दिन मन लगा के काम किया,
नही तो सिर्फ उसके प्यार में डूबा ही देखा।
– मनीषा कुमारी
देखो चाशनी जल रही,
अब तक मिठाई त्यार नही।
लोग तरस रहे प्यार को,
यहाँ प्यार क्या है वही पता नही।
– मनीषा कुमारी
खुशी की खेती जैसे अनाजों की खेती,
उपयोग सभी को करना है,
लेकिन उगानी नही किसी को।
खानी सबको है,
लेकिन बैचनी नही किसी को।
रखना सबको है,
लेकिन देना नही किसी को।
ये खुशी की खेती
करनी नहीं किसी को,
लेकिन इस्तमाल करनी है सबको।
खुशियाँ बाँटोगे तो बढ़ेगी
गम से गम को मिलाओगे तो
सिर्फ गम का माहौल बनाएगी।
बोओगे बीज खुशियों के तो
ये खुद ही गम के घास उखारेगी।
– मनीषा कुमारी
©
शायद सच नही मेरा सच,
लेकिन कहने में कैसा खर्च।
लोगों की बातें,
लोगों की सोंच।
हम कुछ भी कहे,
उनको गलत ही है सोंचना।
– मनीषा कुमारी