यादें बचपन की
डाँट, लाढ़ और दुलार
सब मिलता था,
नाना – नानी के घर जाने की,
अंदर से झिज्ञासा खूब होती थी।
मेले का नाम सुन,
नए खिलोने याद आते थे।
दादी नानी की कहानियों में
हर वक्त,
खोए रहने का जी करता था।
बारिश में नहाना,
झूला झूलना,
वो लकड़ी के खिलोने से खेलना
चेहरे पर करोड़ों की खुशी ला देता था।
खुदसे ही खेल बनाते थे,
जब खेल नहीं मिलते थे।
वो बचपन की यादों में,
मीठी सी मुस्कान आ जाती है।
दुसरे की खुशी में,
खुद की खुशी नज़र आती थी।
बोले से चेहरे के साथ
सारी दुनिया अच्छी लगती थी।
– मनीषा कुमारी