कभी – कभी हम
कुछ बोल के भी,
बोल नहीं पाते।
रोकना है किसी को,
लेकिन रोक नहीं पाते।
बातें बहोत सी है कहने को,
बस कह नही पाते।
रोने के सिवा ,
कभी – कभी कोई चारा नहीं होता।
गुस्सा करने का
कोई फायदा नहीं होता
कुछ बातें भूल के भी भूल नहीं पाते।
जीने को जी लेते हैं,
कहने को कुछ बोल नहीं पाते।
– मनीषा कुमारी