नाराज़गी तो,
आती जाती रहती है।
कभी अपनों से,
तो कभी परायों से।
दोस्तों की दोस्ती,
यूँ पल में नहीं तोड़ी जाती है।
जो पल में टूट जाये,
वो दोस्ती, दोस्ती नहीं होती।
– मनीषा कुमारी
नाराज़गी तो,
आती जाती रहती है।
कभी अपनों से,
तो कभी परायों से।
दोस्तों की दोस्ती,
यूँ पल में नहीं तोड़ी जाती है।
जो पल में टूट जाये,
वो दोस्ती, दोस्ती नहीं होती।
– मनीषा कुमारी
One reply on “नाराज़गी”
True
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