माना शब्दों को हम
सम्भाल न पाए,
तो हम बेकार हो गये।
माना जिंदगी के साथ
हम चल न पाए,
बेकार हो गए।
कहने वाले तो,
बिन डोर के पतंग उड़ाते हैं,
पतंग सी जिंदगी,
कहाँ उड़ जाती है
कुछ पता ही नही चलता।
– मनीषा कुमारी
माना शब्दों को हम
सम्भाल न पाए,
तो हम बेकार हो गये।
माना जिंदगी के साथ
हम चल न पाए,
बेकार हो गए।
कहने वाले तो,
बिन डोर के पतंग उड़ाते हैं,
पतंग सी जिंदगी,
कहाँ उड़ जाती है
कुछ पता ही नही चलता।
– मनीषा कुमारी