शाम से एक उलझन है,
बेचैन करती बातें हैं,
की बोलना जरूरी है,
या बोलकर ही कोई पाप है।
जाने अनजाने में किसी से,
घूमने की बात कर ली,
किसी से बात करने की बात करली,
भले घूमने का इरादा हमारा,
जरा भी न था।
बातें तो खुद के सिवा,
किसी से न कि,
फिर इल्जाम ऐसा लगा,
जिसके बारे में हमने कभी,
कभी भी नही सोंचा।
हमे बात न करने आई,
वार्ना बातों की रंगोली बिखेरना,
हम भी जानते थे।
– मनीषा कुमारी