इच्छाओं की बोली,
लगती रही।
मन की हवा से,
वो चलती रही।
इच्छाओं के बोझ तले,
दब गया शरीर।
तब ध्यान हुआ,
कैसा है शरीर।
– मनीषा कुमारी
इच्छाओं की बोली,
लगती रही।
मन की हवा से,
वो चलती रही।
इच्छाओं के बोझ तले,
दब गया शरीर।
तब ध्यान हुआ,
कैसा है शरीर।
– मनीषा कुमारी