(मोहन को कई दिनों से एक आवाज़ सुनाई दे रही थी।)वो..वो आवाज़… जो बार बार मेरे कानों से टकराती है। क्या है वो? लगता है कोई आया है। लेकिन मैं तो अकेला रहता हूँ। कौन होगा वो? चलो देखते हैं। (दरवाजा खुलते ही) कौन हो तुम? (अनजान इंसान घर में घुसते हुए) मैं.. मैं तुम्हारा दोस्त हूँ। पिछले साल ही तो मिले थे हम। फिर दोनों काफी देर तक बात करते रहे।पुरानी यादें ताज़ा करते रहे। दोस्त के घर से जाते ही, उसे याद आया कि ये तो छह महीने पहले ही मर ही किसी कारण से मर चुका था। वो दोबारा दरवाज़े की तरफ देखता है। कि वो दीवारों के आरपार होता हुआ बाकी जगह घूम रहा है।
– मनीषा कुमारी