चारों तरफ अंधेरा है,
सिर्फ एक तरफ रोशनी है।
मीठी सी मुस्कान है,
आँखों में नमी है।
मन की गलियों में बहोत शोर है,
यादों का मेला लगा है।
एक से बढ़ कर एक यादें है,
वो भी सारी पुरानी और बचपन की।
बचपन खत्म हुआ अब तो,
यादों की पहेली बिखरी है देखो।
फिर भी एक मायूसी सी,
दिल को छूती रेहती है।
– मनीषा कुमारी