उठ गया है भरोसा अब तो,
नाराज़गी है दुनिया से अब तो।
कैसे कोरे कागज़ सी जिंदगी है देखो,
न कोई भाव है न कोई बात है।
फिर भी दिल में हलचल क्यों
ये तो उदास भी है और चंचल भी
न जाने क्यों इसे
भरोसा करने की आदत है।
बस नाटक किया था,
किसी से मदद मांगने का,
लेकिन किसे पता था,
वो अपनी असलियत दिखा बैठेगी।
– मनीषा कुमारी